"आज भी कैद है
वो हर लम्हा मेरी आँखों में "
लहरों की बाँहों में
किनारों को देखना
सोती हुई रातों में
सितारों को देखना
आज भी कैद है
वो हर लम्हा मेरी आँखों में
कभी वो तेरा मुझको कभी
मेरे इशारों को देखना
याद है मुझे वो पिकनिक
वो तेरा इठला के चलना
वो तेरा मुझ पर फेंकना पानी
और तेरा इतर के हँसना
कैसे भूलू मैं वो पल
वो तेरी शरारतें तेरी
कभी बिगड़ कर गुस्से में
कभी मुस्कुरा के देखना
वो लगना चोट मेरे पैरों में
और तेरा "अच्छा हुआ" कहना
और कभी देख कर दर्द में मुझे
वो तेरे आंसू का बहना
वो रहना हर पल साथ मेरे
और हर बात पर लड़ना
वो गुस्से में कहना हर बार तेरा
अब मुझसे बात न करना
कभी चिड़ाने को मुझे
वो तेरा गैरों से मिलना
और कभी इतेजर में मेरे
वो तेरा राहों को तकना
खिलते होंगे फूल
तेरी भी यादों के गुलशन में
कभी खो कर खुद में
इन नज़ारों को देखना
आज भी कैद है
वो हर लम्हा मेरी आँखों में
कभी वो तेरा मुझको कभी
मेरे इशारों को देखना
अमरीश जोशी "अमर"
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