Sunday, March 14, 2010

मेरी बात निकलती तो होगी

IT IS WRITTEN IN THE MEMORIES OF OLD DAYS WHEN I WAS WITH MY FRIENDS AND ALL.
I TRYED TO EXPRESS MY FEELINGS AFTER THE DEPARTURE WITH HOPE THAT THEY ALSO FEEL THE SAME AT THERE.
PLEASE TELL ME, DOES THE POEM CONVEY MY MASSAGE OR NOT?
YOUR COMMENTS WILL INSPIRE ME THE MOST.


महफ़िल में मेरी बात

निकलती तो होगी

हर शख्स को मेरी कमी

खल्ती तो होगी

और यहा तो रुक जाते है

लम्हे, अक्सर यादो के अदब में

वहा भी ऐसी बयार

चलती तो होगी



मेरे ख्वाबो के इंतजार में

चांद तारो के साथ

तन्हा तेरी कोई रात

गुजरती तो होगी

और दिन तो गुजर जाते हैं

जिंदगी कि जद्दोजहत में मगर

मेरे इंतजार में तेरी कोई शाम

ढलती तो होगी



कभी-कभी ख्वाब

तेरे होने का अहसास देते हैं

इस तरह नींद तुझे भी कभी

छलती तो होगी

और रुक जाते होंगे किसी मोड पर

कदम खुद-ब-खुद

तेरी राहे भी मुझसे मिलने को

मचलती तो होगी


जब याद आते होंगे


मेरे साथ बिताये पल

तो एक मुस्कान इन होठो पर

ठहरती तो होगी

और जस्बातो कि वो बर्फ

जो तुने आंखो में दबा रखी हैं

मुझे याद कर के कभी

पिघलती तो होगी



महफिल में मेरी बात

निकलती तो होगी

हर शख्स को मेरी कमी

खल्ती तो होगी

और यहा तो रुक जाते है लम्हे

अक्सर यादो के अदब में

वहा भी ऐसी बयार

चलती तो होगी



अमरीश जोशी "अमर"