Thursday, January 14, 2010

नए साल में बीते सालो की बात अच्छी लगती है

it is talking abt the memories

खवाबो खयालो की बात अच्छी लगती है
नए साल में बीते सालो की बात अच्छी लगती है
कॉपी में लिखे जवाब तो याद नहीं रहते …. मगर
पेपर में छूते सवालो की बात अच्छी लगती है

अँधेरी रात में चांदनी का साथ
पतझड़ के मौसम में बारिश की बात अच्छी लगती है
जिंदगी की जद्दोजहद में जो याद दिला दे बचपन
मुझे बच्चो की हर वो खुरापात अच्छी लगती है

अपने शहर में बेगानों सा हु फिर भी
बेगाने शहर में अपनो से मुलाक़ात अच्छी लगती है
मैं फिक्रमंद हु वो मेरी किस बात पे फ़िदा है
सुनाने वालो को तो मेरी हर बात अच्छी लगती है

खवाबो खयालो की बात अच्छी लगती है
नए साल में बीते सालो की बात अच्छी लगती है


अमरीश जोशी “ अमर ”

तो घर की तरफ चलूँ मैं

it is all abt a person ,who is waiting hopefully for.................and also says that someone please tell me if it is not going to happen.....

घरोंदा बनाये बैठा हूँ रेत पर
कोई लहर आ कर इसे बहाए
तो घर की तरफ चलूँ मैं

दिन ढल चुका चांदनी भी
नसीब नहीं मुझे
राह में दीप कोई जलाये
तो घर की तरफ चलूँ मैं

राहें बेताब और बेबस है ये कदम
थक गया हूँ अकेले चलते चलते
हमराह कोई मिल जाये
तो घर की तरफ चलूँ मैं

नादां, मासूम बच्चों सा ये दिल
मचलता है किसी के लिये
गर वो मुझे मिल जाये
तो घर की तरफ चलूँ मैं

किया था वादा उसने कभी ख्वाब में मिलेंगे
तब से इन्तजार में सोया हूँ
अब आकर कोई जगाये
तो घर की तरफ चलूँ मैं

घरोंदा बनाये बैठा हूँ रेत पर
कोई लहर आ कर इसे बहाए
तो घर की तरफ चलूँ मैं


अमरीश जोशी "अमर"

Wednesday, January 13, 2010

introduction of a poet inside me

Hi friends
I'm Amrish Joshi "amar". As you can guess from my name I am a poet.
I am new to the blog world and want to use this sphere to share my creative writtings with you all. So please feel free to give your feedback about my poems. To start with this poem.............. I will keenly wait for your feedback
Title : "ना तोड़ नींद मेरी"

ना तोड़ नींद मेरी आँखों में कोई ख्वाब रहने दे,
फलक पे मेरे भी चमकता हुआ आफ़ताब रहने दे !
और अलसाई भोर में देर तलक सोने वाले,
तुझे क्या पता?
कैसे गुजरती है करवटों में रात रहने दे !
ना तोड़ नींद मेरी आँखों में कोई ख्वाब रहने दे,
फलक पे मेरे भी चमकता हुआ आफ़ताब रहने दे !

गिना दी तुने सारी वज़ह वाजिब,
बेरुखी दिखाने की,
हमने भी सोचा चलो अभी,
ठीक नहीं हालात रहने दे !
जब खुलेगी बही तेरे-मेरे रिश्तों की,
उस दिन देखेंगे,
बाकी है अभी कई हिसाब रहने दे!
ना तोड़ नींद मेरी आँखों में कोई ख्वाब रहने दे,
फलक पे मेरे भी चमकता हुआ आफ़ताब रहने दे !

और ले जा तू अपनी निशानियाँ सभी,
वो ख़त, वो तोहफे, वो तस्वीर भी,
बस मेरी किताब में अपनी यादों का
महकता गुलाब रहने दे !
ना तोड़ नींद मेरी आँखों में कोई ख्वाब रहने दे,
फलक पे मेरे भी चमकता हुआ आफ़ताब रहने दे !

अमरीश जोशी "अमर"