Tuesday, April 2, 2013

ना बाकि मैं रहूँ ना मेरी तलाश रह जाये

झूका दो मुझे इतना 
बदन बस लाश रह जाये 
ना बाकि मैं रहूँ 
ना मेरी तलाश रह जाये 

ये सोच के  टुटा था मैं
शीशे की तरह यारों 
न बाकि मैं रहूँ 
बस मेरी आवाज़ रह जाये 

मैं टूट कर भी टुकड़ो में हूँ 
बस इसलिए बाकि 
न बाकि मैं रहूँ 
दिल में मगर एक याद रह जाये 

तुझे शिकवे थे शिकायत थी 
मेरे दिल की ये चाहत थी 
ना बाकि मैं रहूँ 
ना तू कही नाराज़ रह जाये 

मेरे दिल ने कहा मुझसे 
नज़र जब फेर ली तुमने 
ना  बाकि मैं रहूँ 
लब  पे मेरे फरियाद रह जाये 

अमरीश जोशी "अमर" 

 

--
--
Thanks & Regards

Amrish Joshi

09425918016

आज कल का खुदा मुझको बना देता तो अच्छा था


आज कल का खुदा मुझको 
बना देता तो अच्छा था 
या पत्थर का वो मुझको 
बना देता तो अच्छा था 

आंखे दी थी दो तूने 
हम जहाँ में चार कर बैठे 
खुदा सीने में दिल भी दो 
बना देता तो अच्छा था 

मैं हु माटी का एक पुतला 
मुझे कोई चाहे भी तो क्यों 
मुझे सोने का पंछी तु 
बना देता तो अच्छा था 

यहाँ कीमत है सच की 
ना इंसानों की कीमत हैं 
मुझे एक कागज़ का टुकड़ा 
बना देता तो अच्छा था 

उसकी चाहत का गम 
और आसूं जीने के सहारे हैं 
मुझे फिर बेसहारा गर
बना देता तो अच्छा था 

मैं हेराँ हूँ परेशां हूँ 
बड़े लोगों की दुनियाँ में 
मुझे फिर छोटा सा बच्चा 
बना देता तो अच्छा था 

ख्वाहिशें पूरी करता हैं 
टूट कर जब चमकता हैं 
मुझे तू ऐसा एक तारा
बना देता तो अच्छा था

रहा मझधार में हर पल 
भँवर बन के उम्मीदों का 
मुझे तू एक किनारा जो 
बना देता तो अच्छा था 

सफ़र में हूँ, सड़क पर अब 
मेरे दिन रात कटते है 
छुपाने को तू सर एक घर 
बना देता तो अच्छा था 

दो बूंदों में ऊफन आती है 
आँखें ऐसी नदिया हैं 
तू पलकों की जगह गर पुल 
बना देता तो अच्छा था 

धरम कानून खिलोनें हैं 
यहाँ दौलत सियासत के
कलम को तू मेरी ताक़त 
बना देता तो अच्छा था  

                 अमरीश जोशी "अमर"

हिंदु है सिख-ईसाई मुसलमान यहाँ है मैं ढूंढता हूँ आज इंसान कहाँ हैं ?


हिंदु है सिख-ईसाई 
मुसलमान यहाँ है 
मैं ढूंढता हूँ आज 
इंसान कहाँ हैं ?

भाषा जाती धरम के टुकड़ो में
बंटता हुआ वतन 
सरे जहाँ से अच्छा 
हिंदोस्तान कहाँ हैं ?

फिर देश में रावन और 
दुस्साशन तो आ गये 
कहाँ है पार्थ सारथी ?
और राम कहाँ हैं ?

आश्रमों में रहने को 
मजबूर बुढ़ापा 
श्रवण कुमार सी वो 
अब संतान कहाँ हैं ?

राजनीति के दल दल में 
अब खिलते नहीं कवँल 
यहाँ झूठ छल कपट तो हैं 
बलिदान कहाँ है ?

नोंच लिए हैं उसके पर 
भ्रष्ट लोगों ने 
अब सोने की चिड़िया के पास 
उड़ान कहा हैं ?

              अमरीश जोशी "अमर"