Friday, October 22, 2010

"मैं आज माँ पर एक किताब लिखूंगा "


"मैं आज माँ पर एक किताब लिखूंगा "
कागज मखमली हो जाएँ
स्याही महकने लगे
लफ्ज दुआ बन जाएँ
कुछ ऐसे मुक़द्दस अहसास लिखूंगा
हाँ मैं आज माँ पर एक किताब लिखूंगा

वो तेरी प्यारी सी थपकियाँ
वो तेरी मीठी-सी डांट
वो तेरे आँचल की ढंडक
सर पर तेरे हाथों का अहसास
खुदा की सारी नेमतों का आज में हिसाब लिखूंगा
हाँ मैं आज माँ पर एक किताब लिखूंगा

गीता के श्लोक
कुरान की आयतें
महबूब की खुबसुरती
प्यार की शिकायतें
दुनिया की तमाम बातें तेरे बाद लिखूंगा
हाँ मैं आज माँ पर एक किताब लिखूंगा

मेरे दर्द में तेरी छटपटाहट
मेरी उदासी में बैचेन तेरी सांसे
मेरे इम्तिहानो में तेरा रतजगा
ओर मेरी ख़ुशी में तेरी छलकती पलकें
आज तेरी हार एक अदा हार एक अंदाज लिखूंगा
हाँ मैं आज माँ पर एक किताब लिखूंगा

"मैं आज माँ पर एक किताब लिखूंगा "


"मैं आज माँ पर एक किताब लिखूंगा "
कागज मखमली हो जाएँ
स्याही महकने लगे
लफ्ज दुआ बन जाएँ
कुछ ऐसे मुक़द्दस अहसास लिखूंगा
हाँ मैं आज माँ पर एक किताब लिखूंगा
वो तेरी प्यारी सी थपकियाँ
वो तेरी मीठी-सी डांट
वो तेरे आँचल की ढंडक
सर पर तेरे हाथों का अहसास
खुदा की सारी नेमतों का आज में हिसाब लिखूंगा
हाँ मैं आज माँ पर एक किताब लिखूंगा
गीता के श्लोक
कुरान की आयतें
महबूब की खुबसुरती
प्यार की शिकायतें
दुनिया की तमाम बातें तेरे बाद लिखूंगा
हाँ मैं आज माँ पर एक किताब लिखूंगा
मेरे दर्द में तेरी छटपटाहट
मेरी उदासी में बैचेन तेरी सांसे
मेरे इम्तिहानो में तेरा रतजगा
ओर मेरी ख़ुशी में तेरी छलकती पलकें
आज तेरी हार एक अदा हार एक अंदाज लिखूंगा
हाँ मैं आज माँ पर एक किताब लिखूंगा

अंतिम दर्शन

Its was a hard time for me as my Grand Ma was serious and I got the news.


अंतिम दर्शन

आ जाओ अंतिम दर्शन को मेरे
फिर मैं तुम्हे देख ना पाऊँगी
और किसे कहोगे दादी दादी
जब मैं सुन ना पाऊँगी
मिल लेंगे जो अब के मिल पाए
फिर कभी ना मिलना होगा
बस इस बूढी दादी से
अब के तुम्हे बिछड़ना होगा

तुम ही कहो ओ मेरे अपने
जी उठे सब मेरे सपने
उस घडी का मुझको कब तक
और इंतजार करना होगा
पर बस इस बूढी दादी से
अब के तुम्हे बिछड़ना होगा

याद भी ना होगा तुम्हे जब मैं
उंगली पकड़ चलाती थी
और सो जाते थे इन कंधो पर तुम
जब प्यार से थपकी लगाती थी
अब इस दादी को सफ़र आखरी
तेरे कंधो पे करना होगा
पर बस इस बूढी दादी से
अब के तुम्हे बिछड़ना होगा

तरस रही है आंखे कब से
तेरी एक झलक पाने को
और खुली है ये बाहे बेटा
तुझको गले लगाने को
बस फिर तो इस नश्वर तन को
अग्नि में ही जलना होगा
पर बस इस बूढी दादी से
अब के तुम्हे बिछड़ना होगा

दुखी ना हो जाने मेरे जाने से बेटा
मैं हर पल तेरे साथ रहूंगी
मंदीर के दीपक और आंगन के
नीम की छाया के जैसी
बस तुझे साल में एक बार
तर्पण मेरा करना होगा
पर बस इस बूढी दादी से
अब के तुम्हे बिछड़ना होगा
बड़ा हो गया है तु बच्चो सी

मुझसे रुकने की जिद ना कर
और रोक ले आंसुओ को अपने
रहे मेरी मुश्किल ना कर
मृत्यु तो बन्धनों से मुक्ति है
ये सच भी तुझे समझना होगा
बस इस बूढी दादी से
अब के तुम्हे बिछड़ना होगा

Love you Dadi

I Miss you

Amrish Joshi

Wednesday, April 14, 2010

"वो मिटटी का खिलौना वो बचपन सलोना"

Last night I was talking with my nephew "Atharva". He told me things he did, in his words; "चाचू आज मैं पापा के साथ बज्जी गया था वहा मैंने आइसक्रीम खाई स्कूल बैग लिया...& so on. His words " चाचू आप आ जाओ ." touched me deeply and took me back to my childhood.....................
..............!
Do you wanna go with me on a safari of golden days of life.........................!
!!!!!!!!
वो मिटटी का खिलौना
वो बचपन सलोना

वो खटिया का बिछोना
वो शहतूत की छाँव
वो बड़ी बड़ी चप्पलों में
छोटे छोटे पाँव

वो बरेली की डोर
वो चिपकी वो ताव
वो उड़ाने से ज्यादा
पतंग लूटने का चाव

वो बैठक चांदी वो लुका छिपी
वो चोर सिपाही कभी कभी धुप छाँव
वो नंगे पैर दौड़ना मैदानों में
वो काँटों से लगना पैरो में घाव

वो करना कुट्टी रोज-रोज दोस्तों से
वो हर दिन साथ कार्टून देखना
वो चलाना पटाखे एक दुसरे के
वो होली पर रंगों के गुब्बारे फेंकना

वो महाभारत वो रामायण
वो चंद्रकांता की कहानी
वो मोगली-बघीरा की दोस्ती
वो टॉम-जेरी की दुश्मनी पुरानी

वो लिखना टायटल होली की रात
वो सुबह जोर जोर से पढ़ना
वो फिल्मो की प्लानिंग
वो टिकिट के पैसो के लिए लड़ना

वो परीक्षा की रातों में
सबका छतो पे पढ़ना
वो चार लोगो के मिलते ही
ताश का चलना

वो बनाना रावण दशहरे पर
जन्माष्टमी पर मटकी फोड़ना
वो सताना समझाना दोस्तों का
वो कहना "ए चल छोड़ना"

वो मिटटी का खिलौना
वो बचपन सलोना
वो मम्मी से बाज़ार में जिद
मुझे क्रिकेट बेट लेकर दो ना

वो बारिश का पानी
वो कागज की नाव
वो मम्मी का रोज कहना
चलो उठो स्कूल जाओ

वो कुल्फी का ठेला
वो चोकलेट का भाव
सब याद आता हे जब तु कहता हे
चाचू आप आ जाओ
चाचू आप आ जाओ.........

अमरीश जोशी "अमर"
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Sunday, March 14, 2010

मेरी बात निकलती तो होगी

IT IS WRITTEN IN THE MEMORIES OF OLD DAYS WHEN I WAS WITH MY FRIENDS AND ALL.
I TRYED TO EXPRESS MY FEELINGS AFTER THE DEPARTURE WITH HOPE THAT THEY ALSO FEEL THE SAME AT THERE.
PLEASE TELL ME, DOES THE POEM CONVEY MY MASSAGE OR NOT?
YOUR COMMENTS WILL INSPIRE ME THE MOST.


महफ़िल में मेरी बात

निकलती तो होगी

हर शख्स को मेरी कमी

खल्ती तो होगी

और यहा तो रुक जाते है

लम्हे, अक्सर यादो के अदब में

वहा भी ऐसी बयार

चलती तो होगी



मेरे ख्वाबो के इंतजार में

चांद तारो के साथ

तन्हा तेरी कोई रात

गुजरती तो होगी

और दिन तो गुजर जाते हैं

जिंदगी कि जद्दोजहत में मगर

मेरे इंतजार में तेरी कोई शाम

ढलती तो होगी



कभी-कभी ख्वाब

तेरे होने का अहसास देते हैं

इस तरह नींद तुझे भी कभी

छलती तो होगी

और रुक जाते होंगे किसी मोड पर

कदम खुद-ब-खुद

तेरी राहे भी मुझसे मिलने को

मचलती तो होगी


जब याद आते होंगे


मेरे साथ बिताये पल

तो एक मुस्कान इन होठो पर

ठहरती तो होगी

और जस्बातो कि वो बर्फ

जो तुने आंखो में दबा रखी हैं

मुझे याद कर के कभी

पिघलती तो होगी



महफिल में मेरी बात

निकलती तो होगी

हर शख्स को मेरी कमी

खल्ती तो होगी

और यहा तो रुक जाते है लम्हे

अक्सर यादो के अदब में

वहा भी ऐसी बयार

चलती तो होगी



अमरीश जोशी "अमर"

Monday, February 1, 2010

आत्मा का गीत A motivational song of my soul

"आत्मा का गीत "
A motivational song of my soul
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आनंद हो प्रचंड
कर के तम को खंड खंड
अपने होठों को हंसी की
तू फुहार दे
आत्मा के गीत को
सत्य के संगीत को
बन रोम रोम साज
तू आवाज़ दे

ना डर अभी तू यत्न कर
जीने का प्रयत्न कर
दे दूसरों को रोशनी
तू आँखों में वो स्वप्न धर
लिख दे कुछ तू गीत ऐसे
जिस्म में लहू के जैसे
दिन ढले उम्मीदों का
ना होसलों की अब कभी भी रात हो

आनंद हो प्रचंड
कर के तम को खंड खंड
अपने होठों को हंसी की
तू फुहार दे
आत्मा के गीत को
सत्य के संगीत को
बन रोम रोम साज
तू आवाज़ दे

है तुझको गर जो प्रीत तो
प्रीत की ही जीत हो
इस प्रण से अपनी प्रीत
को आधार दे
जीवन हो या के हो मरण
हो रंग महल या के रण
जी ले ऐसे एक क्षण
की मौत की भी तेरे आगे मात हो

आनंद हो प्रचंड
कर के तम को खंड खंड
अपने होठों को हंसी की
तू फुहार दे
आत्मा के गीत को
सत्य के संगीत को
बन रोम रोम साज
तू आवाज़ दे

अमरीश जोशी "अमर"

Thursday, January 14, 2010

नए साल में बीते सालो की बात अच्छी लगती है

it is talking abt the memories

खवाबो खयालो की बात अच्छी लगती है
नए साल में बीते सालो की बात अच्छी लगती है
कॉपी में लिखे जवाब तो याद नहीं रहते …. मगर
पेपर में छूते सवालो की बात अच्छी लगती है

अँधेरी रात में चांदनी का साथ
पतझड़ के मौसम में बारिश की बात अच्छी लगती है
जिंदगी की जद्दोजहद में जो याद दिला दे बचपन
मुझे बच्चो की हर वो खुरापात अच्छी लगती है

अपने शहर में बेगानों सा हु फिर भी
बेगाने शहर में अपनो से मुलाक़ात अच्छी लगती है
मैं फिक्रमंद हु वो मेरी किस बात पे फ़िदा है
सुनाने वालो को तो मेरी हर बात अच्छी लगती है

खवाबो खयालो की बात अच्छी लगती है
नए साल में बीते सालो की बात अच्छी लगती है


अमरीश जोशी “ अमर ”

तो घर की तरफ चलूँ मैं

it is all abt a person ,who is waiting hopefully for.................and also says that someone please tell me if it is not going to happen.....

घरोंदा बनाये बैठा हूँ रेत पर
कोई लहर आ कर इसे बहाए
तो घर की तरफ चलूँ मैं

दिन ढल चुका चांदनी भी
नसीब नहीं मुझे
राह में दीप कोई जलाये
तो घर की तरफ चलूँ मैं

राहें बेताब और बेबस है ये कदम
थक गया हूँ अकेले चलते चलते
हमराह कोई मिल जाये
तो घर की तरफ चलूँ मैं

नादां, मासूम बच्चों सा ये दिल
मचलता है किसी के लिये
गर वो मुझे मिल जाये
तो घर की तरफ चलूँ मैं

किया था वादा उसने कभी ख्वाब में मिलेंगे
तब से इन्तजार में सोया हूँ
अब आकर कोई जगाये
तो घर की तरफ चलूँ मैं

घरोंदा बनाये बैठा हूँ रेत पर
कोई लहर आ कर इसे बहाए
तो घर की तरफ चलूँ मैं


अमरीश जोशी "अमर"

Wednesday, January 13, 2010

introduction of a poet inside me

Hi friends
I'm Amrish Joshi "amar". As you can guess from my name I am a poet.
I am new to the blog world and want to use this sphere to share my creative writtings with you all. So please feel free to give your feedback about my poems. To start with this poem.............. I will keenly wait for your feedback
Title : "ना तोड़ नींद मेरी"

ना तोड़ नींद मेरी आँखों में कोई ख्वाब रहने दे,
फलक पे मेरे भी चमकता हुआ आफ़ताब रहने दे !
और अलसाई भोर में देर तलक सोने वाले,
तुझे क्या पता?
कैसे गुजरती है करवटों में रात रहने दे !
ना तोड़ नींद मेरी आँखों में कोई ख्वाब रहने दे,
फलक पे मेरे भी चमकता हुआ आफ़ताब रहने दे !

गिना दी तुने सारी वज़ह वाजिब,
बेरुखी दिखाने की,
हमने भी सोचा चलो अभी,
ठीक नहीं हालात रहने दे !
जब खुलेगी बही तेरे-मेरे रिश्तों की,
उस दिन देखेंगे,
बाकी है अभी कई हिसाब रहने दे!
ना तोड़ नींद मेरी आँखों में कोई ख्वाब रहने दे,
फलक पे मेरे भी चमकता हुआ आफ़ताब रहने दे !

और ले जा तू अपनी निशानियाँ सभी,
वो ख़त, वो तोहफे, वो तस्वीर भी,
बस मेरी किताब में अपनी यादों का
महकता गुलाब रहने दे !
ना तोड़ नींद मेरी आँखों में कोई ख्वाब रहने दे,
फलक पे मेरे भी चमकता हुआ आफ़ताब रहने दे !

अमरीश जोशी "अमर"