बुझी हुई शमाओ को देख रात भर जलाता रहा हु मैं
भटके हुए रस्तो पर उम्र भर चलता रहा हु मैं
ना मिली मंजिल मुझे ना मिले हमराही दोस्तों
हर मोड़ पर गिर कर खुद सम्हलता रहा हु मैं
तरसा हु रोशनी को जब से मिली है आँखे
टूट कर हर रात तारों सा चमकता रहा हु मैं
क्या हु कैसा हु किसी से ये क्या कहू
झूठ की माटी से सच को गढ़ता रहा हु मैं
उसने भी दिल में दर्द आँखों में सागर भर दिए
एक बूंद पानी के लिए मचलता रहा हु मैं
बुझी हुई शमाओ को देख रात भर जलाता रहा हु मैं
भटके हुए रस्तो पर उम्र भर चलता रहा हु मैं
BY:-
Amrish Joshi "Amar"
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