Monday, February 11, 2013

जस्बातों के दरिया में मौजें आती है जाती है



की जस्बातों के दरिया में 
मौजें आती है जाती है 
कभी हँसती है वो मुझ पर 
कभी मुझको  हँसाती है 
की जस्बातों के दरिया में 
मौजें आती है जाती है 

कभी मैं रूठ जाता हूँ 
कभी वो रूठ जाती है
कभी मैं भी मनाता हूँ  
कभी वो भी मानती है 
की जस्बातों के दरिया में 
मौजें आती है जाती है 

कभी उम्मीद बन कर वो 
रह मुझको दिखाती है 
कभी जो दर्द में देखे,  मुझे 
तो टूट जाती है 
की जस्बातों के दरिया में 
मौजें आती है जाती है 

कर के श्रृंगार वो सोलह
कभी मुझको लुभाती है 
पूछता हूँ वजह जब भी 
वो हँस के टाल जाती है 
की जस्बातों के दरिया में 
मौजें आती है जाती है 

कभी वो बात करती है 
कभी बातें बनाती है 
कभी आँखें दिखाती है 
कभी नज़रें चुराती है 
की जस्बातों के दरिया में 
मौजें आती है जाती है 

राह तकती है वो मेरी
रोज खुद को सजाती है
जब आता हूँ गली में मैं 
वो दौड़ खडकी में आती है 
की जस्बातों के दरिया में 
मौजें आती है जाती है 

कभी वो याद करती है
कभी वो याद आती है
पास न हो जो वो मेरे
ख़ुशी भी रूठ जाती है 
की जस्बातों के दरिया में 
मौजें आती है जाती है 


अलग यूँ  है वो ज़माने से
जैसे शबनम हो बूंदों में
प्यार की धुप में देखो 
वो कैसे जगमगाती है 
की जस्बातों के दरिया में 
मौजें आती है जाती है 


याद रखती है यूँ मुझको
वो खुद को भूल जाती है 
की जस्बातों के दरिया में 
मौजें आती है जाती है 

अमरीश  जोशी "अमर 




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