Monday, February 11, 2013

मैं भी यहाँ खामोश रहू

एक तरफ नाम आँखों से 
अर्थी पैर डाले गए सिक्कों की खन खन 
दूसरी तरफ उन्ही सिक्कों को उठता 
ख़ुशी से आल्हादित बचपन 
एक तरफ मृतक के परिजनों का दुःख 
उनका करुण रुदन 
दूसरी और उन बच्चो की निर्दोष ख़ुशी 
आज जेड में जलेबी खा पाने का आनंद 
दिल असमंजस में है 
किस के लिए अफ़सोस करू 
दिमाग कहता है
चीखती चिल्लाती दुनिया की तरह
मैं भी यहाँ खामोश रहू

अमरीश जोशी "अमर"

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