की जस्बातों के दरिया में
मौजें आती है जाती है
कभी हँसती है वो मुझ पर
कभी मुझको हँसाती है
की जस्बातों के दरिया में
मौजें आती है जाती है
कभी मैं रूठ जाता हूँ
कभी वो रूठ जाती है
कभी मैं भी मनाता हूँ
कभी वो भी मानती है
की जस्बातों के दरिया में
मौजें आती है जाती है
कभी उम्मीद बन कर वो
रह मुझको दिखाती है
कभी जो दर्द में देखे, मुझे
तो टूट जाती है
की जस्बातों के दरिया में
मौजें आती है जाती है
कर के श्रृंगार वो सोलह
कभी मुझको लुभाती है
पूछता हूँ वजह जब भी
वो हँस के टाल जाती है
की जस्बातों के दरिया में
मौजें आती है जाती है
कभी वो बात करती है
कभी बातें बनाती है
कभी आँखें दिखाती है
कभी नज़रें चुराती है
की जस्बातों के दरिया में
मौजें आती है जाती है
राह तकती है वो मेरी
रोज खुद को सजाती है
जब आता हूँ गली में मैं
वो दौड़ खडकी में आती है
की जस्बातों के दरिया में
मौजें आती है जाती है
कभी वो याद करती है
कभी वो याद आती है
पास न हो जो वो मेरे
ख़ुशी भी रूठ जाती है
मौजें आती है जाती है
अलग यूँ है वो ज़माने से
जैसे शबनम हो बूंदों में
प्यार की धुप में देखो
वो कैसे जगमगाती है
मौजें आती है जाती है
याद रखती है यूँ मुझको
वो खुद को भूल जाती है
की जस्बातों के दरिया में मौजें आती है जाती है
अमरीश जोशी "अमर
बहुत खूब
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