आज कल का खुदा मुझको
बना देता तो अच्छा था
या पत्थर का वो मुझको
बना देता तो अच्छा था
आंखे दी थी दो तूने
हम जहाँ में चार कर बैठे
खुदा सीने में दिल भी दो
बना देता तो अच्छा था
मैं हु माटी का एक पुतला
मुझे कोई चाहे भी तो क्यों
मुझे सोने का पंछी तु
बना देता तो अच्छा था
यहाँ कीमत है सच की
ना इंसानों की कीमत हैं
मुझे एक कागज़ का टुकड़ा
बना देता तो अच्छा था
उसकी चाहत का गम
और आसूं जीने के सहारे हैं
मुझे फिर बेसहारा गर
बना देता तो अच्छा था
मैं हेराँ हूँ परेशां हूँ
बड़े लोगों की दुनियाँ में
मुझे फिर छोटा सा बच्चा
बना देता तो अच्छा था
ख्वाहिशें पूरी करता हैं
टूट कर जब चमकता हैं
मुझे तू ऐसा एक तारा
बना देता तो अच्छा था
रहा मझधार में हर पल
भँवर बन के उम्मीदों का
मुझे तू एक किनारा जो
बना देता तो अच्छा था
सफ़र में हूँ, सड़क पर अब
मेरे दिन रात कटते है
छुपाने को तू सर एक घर
बना देता तो अच्छा था
दो बूंदों में ऊफन आती है
आँखें ऐसी नदिया हैं
तू पलकों की जगह गर पुल
बना देता तो अच्छा था
धरम कानून खिलोनें हैं
यहाँ दौलत सियासत के
कलम को तू मेरी ताक़त
बना देता तो अच्छा था
अमरीश जोशी "अमर"
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