Thursday, January 14, 2010

तो घर की तरफ चलूँ मैं

it is all abt a person ,who is waiting hopefully for.................and also says that someone please tell me if it is not going to happen.....

घरोंदा बनाये बैठा हूँ रेत पर
कोई लहर आ कर इसे बहाए
तो घर की तरफ चलूँ मैं

दिन ढल चुका चांदनी भी
नसीब नहीं मुझे
राह में दीप कोई जलाये
तो घर की तरफ चलूँ मैं

राहें बेताब और बेबस है ये कदम
थक गया हूँ अकेले चलते चलते
हमराह कोई मिल जाये
तो घर की तरफ चलूँ मैं

नादां, मासूम बच्चों सा ये दिल
मचलता है किसी के लिये
गर वो मुझे मिल जाये
तो घर की तरफ चलूँ मैं

किया था वादा उसने कभी ख्वाब में मिलेंगे
तब से इन्तजार में सोया हूँ
अब आकर कोई जगाये
तो घर की तरफ चलूँ मैं

घरोंदा बनाये बैठा हूँ रेत पर
कोई लहर आ कर इसे बहाए
तो घर की तरफ चलूँ मैं


अमरीश जोशी "अमर"

2 comments:

  1. One of the Best "Amar" creation...

    ReplyDelete
  2. I read all your poem and i found ur poem sence is continusly improve keep it up

    ReplyDelete