लोग मिलते है मिल के बिछड़ जाते है
ये वो मौसम है जो पल में बदल जाते है
कैसे कहे हम उन्हें हमराह दोस्तों
वफ़ा के मोड़ पे जो तन्हा छोड़ जाते है
किसी को पाने की दिल से ख्वाहिश तो क
र अपनी चाहत की खुदा से फरमाइश तो कर
लड़ कर ही जीती थी सिकंदर ने दुनिया
तु भी जरा तकदीर से जोर आजमाइश तो कर
अमरीश जोशी "अमर"
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किस्मत कभी किसी का सदा साथ नहीं देती
ये दे भी दे समंदर तो प्यास नहीं देती
और क्या सुनाऊ यारो मैं दिल का हाल
धड़कने आवाज़ तो देती है मगर अल्फाज़ नहीं देती
अमरीश जोशी "अमर"
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अमरीश जोशी "अमर"
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Thursday, March 15, 2012
लोग मिलते है मिल के बिछड़ जाते है
लोग मिलते है मिल के बिछड़ जाते है
ये वो मौसम है जो पल में बदल जाते है
कैसे कहे हम उन्हें हमराह दोस्तों
वफ़ा के मोड़ पे जो तन्हा छोड़ जाते है
किसी को पाने की दिल से ख्वाहिश तो कर
अपनी चाहत की खुदा से फरमाइश तो कर
लड़ कर ही जीती थी सिकंदर ने दुनिया
तु भी जरा तकदीर से जोर आजमाइश तो कर
अमरीश जोशी "अमर"
ये वो मौसम है जो पल में बदल जाते है
कैसे कहे हम उन्हें हमराह दोस्तों
वफ़ा के मोड़ पे जो तन्हा छोड़ जाते है
किसी को पाने की दिल से ख्वाहिश तो कर
अपनी चाहत की खुदा से फरमाइश तो कर
लड़ कर ही जीती थी सिकंदर ने दुनिया
तु भी जरा तकदीर से जोर आजमाइश तो कर
अमरीश जोशी "अमर"
"आज भी कैद है वो हर लम्हा मेरी आँखों में "
"आज भी कैद है
वो हर लम्हा मेरी आँखों में "
लहरों की बाँहों में
किनारों को देखना
सोती हुई रातों में
सितारों को देखना
आज भी कैद है
वो हर लम्हा मेरी आँखों में
कभी वो तेरा मुझको कभी
मेरे इशारों को देखना
याद है मुझे वो पिकनिक
वो तेरा इठला के चलना
वो तेरा मुझ पर फेंकना पानी
और तेरा इतर के हँसना
कैसे भूलू मैं वो पल
वो तेरी शरारतें तेरी
कभी बिगड़ कर गुस्से में
कभी मुस्कुरा के देखना
वो लगना चोट मेरे पैरों में
और तेरा "अच्छा हुआ" कहना
और कभी देख कर दर्द में मुझे
वो तेरे आंसू का बहना
वो रहना हर पल साथ मेरे
और हर बात पर लड़ना
वो गुस्से में कहना हर बार तेरा
अब मुझसे बात न करना
कभी चिड़ाने को मुझे
वो तेरा गैरों से मिलना
और कभी इतेजर में मेरे
वो तेरा राहों को तकना
खिलते होंगे फूल
तेरी भी यादों के गुलशन में
कभी खो कर खुद में
इन नज़ारों को देखना
आज भी कैद है
वो हर लम्हा मेरी आँखों में
कभी वो तेरा मुझको कभी
मेरे इशारों को देखना
अमरीश जोशी "अमर"
वो हर लम्हा मेरी आँखों में "
लहरों की बाँहों में
किनारों को देखना
सोती हुई रातों में
सितारों को देखना
आज भी कैद है
वो हर लम्हा मेरी आँखों में
कभी वो तेरा मुझको कभी
मेरे इशारों को देखना
याद है मुझे वो पिकनिक
वो तेरा इठला के चलना
वो तेरा मुझ पर फेंकना पानी
और तेरा इतर के हँसना
कैसे भूलू मैं वो पल
वो तेरी शरारतें तेरी
कभी बिगड़ कर गुस्से में
कभी मुस्कुरा के देखना
वो लगना चोट मेरे पैरों में
और तेरा "अच्छा हुआ" कहना
और कभी देख कर दर्द में मुझे
वो तेरे आंसू का बहना
वो रहना हर पल साथ मेरे
और हर बात पर लड़ना
वो गुस्से में कहना हर बार तेरा
अब मुझसे बात न करना
कभी चिड़ाने को मुझे
वो तेरा गैरों से मिलना
और कभी इतेजर में मेरे
वो तेरा राहों को तकना
खिलते होंगे फूल
तेरी भी यादों के गुलशन में
कभी खो कर खुद में
इन नज़ारों को देखना
आज भी कैद है
वो हर लम्हा मेरी आँखों में
कभी वो तेरा मुझको कभी
मेरे इशारों को देखना
अमरीश जोशी "अमर"
बुझी हुई शमाओ को देख रात भर जलाता रहा हु मैं
बुझी हुई शमाओ को देख रात भर जलाता रहा हु मैं
भटके हुए रस्तो पर उम्र भर चलता रहा हु मैं
ना मिली मंजिल मुझे ना मिले हमराही दोस्तों
हर मोड़ पर गिर कर खुद सम्हलता रहा हु मैं
तरसा हु रोशनी को जब से मिली है आँखे
टूट कर हर रात तारों सा चमकता रहा हु मैं
क्या हु कैसा हु किसी से ये क्या कहू
झूठ की माटी से सच को गढ़ता रहा हु मैं
उसने भी दिल में दर्द आँखों में सागर भर दिए
एक बूंद पानी के लिए मचलता रहा हु मैं
बुझी हुई शमाओ को देख रात भर जलाता रहा हु मैं
भटके हुए रस्तो पर उम्र भर चलता रहा हु मैं
BY:-
Amrish Joshi "Amar"
भटके हुए रस्तो पर उम्र भर चलता रहा हु मैं
ना मिली मंजिल मुझे ना मिले हमराही दोस्तों
हर मोड़ पर गिर कर खुद सम्हलता रहा हु मैं
तरसा हु रोशनी को जब से मिली है आँखे
टूट कर हर रात तारों सा चमकता रहा हु मैं
क्या हु कैसा हु किसी से ये क्या कहू
झूठ की माटी से सच को गढ़ता रहा हु मैं
उसने भी दिल में दर्द आँखों में सागर भर दिए
एक बूंद पानी के लिए मचलता रहा हु मैं
बुझी हुई शमाओ को देख रात भर जलाता रहा हु मैं
भटके हुए रस्तो पर उम्र भर चलता रहा हु मैं
BY:-
Amrish Joshi "Amar"
Monday, March 12, 2012
रंगरेज़ा ये चुनर रंग दे मोहे अपने रंग में मलंग कर दे
रंगरेज़ा रंगरेज़ा !!
रंगरेज़ा ये चुनर रंग दे मोहे
अपने रंग में मलंग कर दे
मैं भूलू दुनियां सारी
हर हसरत हर होशियारी
मुझे जीने का शौक लगा है
मेरे मरने का डर ख़तम कर दे
रंगरेज़ा ये चुनर रंग दे मोहे
अपने रंग में मलंग कर दे
तेरी दुनिया अजब बड़ी है
खुद में ही उलझी पड़ी है
रातें है जागी-जागी
सुबह की नींद बड़ी है
अब तो तु अलख जगा के
मोरा मन खुद में मगन कर दे
रंगरेज़ा ये चुनर रंग दे मोहे
अपने रंग में मलंग कर दे
Thanks & Regards
अमरीश जोशी "अमर"
रंगरेज़ा ये चुनर रंग दे मोहे
अपने रंग में मलंग कर दे
मैं भूलू दुनियां सारी
हर हसरत हर होशियारी
मुझे जीने का शौक लगा है
मेरे मरने का डर ख़तम कर दे
रंगरेज़ा ये चुनर रंग दे मोहे
अपने रंग में मलंग कर दे
तेरी दुनिया अजब बड़ी है
खुद में ही उलझी पड़ी है
रातें है जागी-जागी
सुबह की नींद बड़ी है
अब तो तु अलख जगा के
मोरा मन खुद में मगन कर दे
रंगरेज़ा ये चुनर रंग दे मोहे
अपने रंग में मलंग कर दे
Thanks & Regards
अमरीश जोशी "अमर"
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